अगर पुलिस FIR न लिखे तो क्या करना चाहिए?

संज्ञेय अपराध होने पर भी पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है तो पीड़ित को सीनियर अफसरों से मिलना चाहिए।

अगर तब भी रिपोर्ट दर्ज न हो, तो CRPC (क्रिमिनल प्रसीजर कोड) के सेक्शन 156(3) के तहत पीड़ित मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दे सकता है। मैट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट के पास यह शक्ति है कि वह FIR दर्ज करने के लिए पुलिस को आदेश दे सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रावधान किया है कि FIR दर्ज न होने पर धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में अपील करने के बजाय मैट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत में जाना चाहिए।

NCR (नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट) क्या है?

किसी सामान की चोरी होने पर IPC की धारा 379 के तहत FIR दर्ज की जाती है और गुम होने पर नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट (NCR) दर्ज की जाती है। NCR थाने के रिकॉर्ड में तो रहती है, लेकिन इसे कोर्ट में नहीं भेजा जा सकता है| पुलिस इसकी तफ्तीश भी नहीं करती है|

FIR औऱ NCR के बीच के अंतर की जानकारी कम लोगों को है। इसी बात का फायदा उठाकर पुलिस अक्सर सामान चोरी होने पर भी NCR थमा देती है। ज्यादातर लोग इसे ही FIR समझ लेते हैं| FIR पर साफ शब्दों में “प्राथमिक सूचना रिपोर्ट” और IPC का सेक्शन लिखा होता है, जबकि NCR पर “नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट” लिखा होता है|

ZERO FIR क्या है?

ZERO FIR इसके तहत पीड़ित व्यक्ति अपराध के सन्दर्भ में अविलम्ब कार्यवाही हेतु किसी भी पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है एवं बाद में केस को उपरोक्त थाने में ट्रान्सफर भी करवाया जा सकता हैं|

कई बार पुलिस FIR दर्ज करने से पहले ही मामले की जांच-पड़ताल शुरू कर देती है, जबकि नियमानुसार पहले FIR दर्ज होनी चाहिए तदुपरांत जांच-पड़ताल होनी चाहिए|

घटना स्थल पर FIR दर्ज कराने की स्थिति में अगर आप FIR की कॉपी नहीं ले पाते हैं, तो पुलिस आपको FIR की कॉपी डाक से भेजेगी।

आपकी FIR पर क्या कार्रवाई हुई, इस बारे में संबंधित पुलिस अधिकारी आपको डाक से सूचित करेगा|

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