जानिए पुलिस FIR से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

FIR क्या होती है?

किसी आपराधिक घटना के संबंध में पुलिस के पास कारवाई के लिए दर्ज की गई सूचना को प्राथमिकी या प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (FIR) कहा जाता है| प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (FIR) एक लिखित प्रपत्र (डॉक्युमेन्ट) होता है जो पुलिस द्वारा किसी संज्ञेय अपराध (cognizable offence) की सूचना प्राप्त होने पर तैयार किया जाता है|

कब दर्ज होती है FIR?

FIR संज्ञेय अपराधों (ऐसे अपराध जिसमें गिरफ्तारी के लिए पुलिस को किसी वारंट की जरूरत नहीं होती है) में ही दर्ज होती है। इसके तहत पुलिस को अधिकार होता है कि वह आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करे और जांच-पड़ताल करे| अगर अपराध संज्ञेय नहीं है तो उसकी FIR नहीं लिखी जाती है और ऐसी स्थिति में बिना कोर्ट के इजाजत के कारवाई संभव नहीं हो पाती है|

कैसे दर्ज होती है FIR?

1. पीड़ित सीधा थाने आकर अपने लिखित या मौखिक बयान के आधार पर FIR दर्ज करा सकता है।

2. पीसीआर कॉल से मिली खबर की जाँच कर FIR दर्ज की जा सकती है।

3. वारदात की खबर मिलने पर थाने का ड्यूटी अफसर ASI को मौके पर भेजता है। ASI चश्मदीदों के बयान दर्जकर रुक्का (एक संक्षिप्त रिपोर्ट) लिखता है। इस रुक्के के आधार पर पुलिस FIR दर्ज करती है। यह तरीका सिर्फ जघन्य वारदात के दौरान ही अपनाया जाता है।

FIR दर्ज करने में क्यों लगती है देर?

बाइक, कार या कोई अन्य सामान चोरी होने पर पुलिस के तुरंत FIR दर्ज न करने की प्रमुख वजह यह है कि पुलिस कुछ दिन तक यह इंतजार करती रहती है कि चोरी किया गया सामान पीड़ित को किसी तरह मिल जाए|

पुलिसकर्मी FIR दर्ज न करने की एक वजह इसे भी बताते है। हर FIR की कॉपी थाने से ACP, Additional DCP-1, Additional DCP-2, District DCP और मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट को भेजी जाती है। जघन्य अपराधों की FIR की कॉपी उस क्षेत्र के जॉइंट कमिश्नर को भी भेजी जाती है|

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